शायरी मेरे बस का रोग नहीं
हिकमते नगमा साजी आती है
वैसे इस सिंफ में भी कच्चा हूँ
थोड़ी सी बैत्बाज़ी आती है
यूँ तो कितने ही गीत लिखते हैं
मैं सुरों के ही बोल लिखता हूँ
पहले किरदार कोई रचता हूँ
लफ्ज उसके बकौल लिखता हूँ
मुझसे उम्मीद ज्यादा मत रखियो
सिर्फ बंदा नवाज़ी आती है
मुझमे शोखी है न तबस्सुम है
कड़वा सुच ही बयान करता हूँ
लोग जिस बात तो भुलाते हैं
मैं वही बार बार रचता हूँ
मेरा नगमा अगर सुरीला लगे
साज़ वालों की चालबाजी है
सोंचता हूँ या जो समझता हूँ
कैफिअत वो बयान करता हूँ
इस तरह छंद बंद में रहकर
जीता रहता हूँ और मरता हूँ
जब कलेजा सुकून पता है
मै समझता हूँ रब भी राज़ी है
नगमा साजी भी कोई खेल नहीं
बेतुके लफ्ज़ का ये मेल नहीं
इसमें पूरा दिमाग खपता है
नाज़ुके सिंफ है रखैल नहीं
रिश्ता खुद ही बनाना पड़ता है
सिफे मुल्ला है न तो काजी है
शायरी मेरे बस का रोग नहीं
हिकमते नगमा साजी आती है
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