कितना बढ़िया था वह गाँव
घर के बाहर बाग बगीचा आम पपीता केला था
घारी में दो बैल बंधे थे लकड़ी का एक ठेला था
काम काज करने वालों से जुडी सी रिश्तेदारी थी
अंगनाई के कोने कोने सब्जी वाली क्यारी थी
चटक धुप की गर्मी हरती पीपल नीम की ठंडी छाँव
कितना बढ़िया था वह गाँव
छोटा सा स्कूल था अपना तख्ती दुद्धी बस्ता था
खेतो में बिखरी हरियाली पगडण्डी सा रास्ता था
चाहे हो त्यौहार किसी का मिलके सभी मनाते थे
मस्त कलंदर जुम्मन काका झूमके फगुआ गाते थे
आज सभी त्यौहार वही हैं लोगों में है क्यों अलगाव
कितना बढ़िया था वह गाँव
सावन के झूलों की मस्ती रिमझिम मस्त महीना था
हथिया की सीनाजोरी से मुश्किल सब का जीना था
याद है हम को दादा जी के पास पुरानी बग्घी थी
चांदनी रात में हमको भाति खो खो और कबड्डी थी
सभी दिखाते खेल भावना चोटें लगती ठांव कुठाओं
कितना बढ़िया था वह गाँव
इक आँगन इक छाजन ही परिवार की होती परिभाषा
भरे पेट तन ढका रहे बस इतनी रहती अभिलाषा
भाई भतीजे सगे से बढकर तब तो जाने जाते थे
जो कुछ मिलता घर मुखिया के हाथ पे रक्खे जाते थे
बदल गई सारी परिभाषा "अपनी नदिया अपनी नाव"
कितना बढ़िया था वह गाँव
गर्मी में घर के बाहर सब खाट बिछा कर सोते थे
चौपालों में रात गए तक आल्हा ऊदल होते थे
आम के बाग़ों में रातों को आना जाना रहता था
मेल मिलाप का अदभुत संगम सब लोंगो में मिलता था
सामाजिक बंधन में बंध कर सब दिखलाते आदरभाव
कितना बढ़िया था वह गाँव
बेटी के गुन सुन कर ही सब हो जाया करते थे राज़ी
इक आँगन इक छाजन ही परिवार की होती परिभाषा
भरे पेट तन ढका रहे बस इतनी रहती अभिलाषा
भाई भतीजे सगे से बढकर तब तो जाने जाते थे
जो कुछ मिलता घर मुखिया के हाथ पे रक्खे जाते थे
बदल गई सारी परिभाषा "अपनी नदिया अपनी नाव"
कितना बढ़िया था वह गाँव
गर्मी में घर के बाहर सब खाट बिछा कर सोते थे
चौपालों में रात गए तक आल्हा ऊदल होते थे
आम के बाग़ों में रातों को आना जाना रहता था
मेल मिलाप का अदभुत संगम सब लोंगो में मिलता था
सामाजिक बंधन में बंध कर सब दिखलाते आदरभाव
कितना बढ़िया था वह गाँव
बेटी के गुन सुन कर ही सब हो जाया करते थे राज़ी
रिश्तों की बुनियाद हुआ करती थी होने वाली शादी
लेन देन की बात का चक्कर वहां कहाँ पैर चलता था
अगवानी से विदा घडी तक किसी को कुछ न खलता था
कन्या पक्ष से लड़के वाले रखते थे अच्छा बर्ताव
कितना बढ़िया था वो गाँव
सुबह सुबह पक्के कुएं पर पनिहारिन जब आती थीं
जिस जिस घर में पानी भरतीं सुब का हाल सुनाती थीं
किसकी चक्की टूट गयी है किसका जनता नया नया
किसकी ढेंकी लंगड़ी धुन्ग्री किसका टांका कहाँ भिड़ा
किसके नयना पी बिन बरसें किस किस के भारी हैं पौव
कितना बढ़िया था वह गाँव
शीत लहर आने के पहले ताल में पक्षी आते थे
तरह तरह के रंग बिरंगे जलवे खूब सुहाते थे
पनचक्की पर गठरी लेकर गोरी का आना जाना
याद ज़रा सी आते ही मून हो जाया करता दीवाना
सूरज ढलते चौपालों में जल उठते थे कई अलाव
कितना बढ़िया था वह गाँव
आज शहर की भीड़ भाड़ में खोज रहा हूँ रोटी पानी
माँ के हाथ से दूध मलाई बीते युग की कोई कहानी
बेफिक्री के सर पर ऐसा फ़िक्र ने लक्कड़ मारा है
मजबूरी के आगे गिरवी अपना दिल बेचारा है
जीवन गाथा और नहीं कुछ यह तो है कागज़ की नाव
कितना बढ़िया था वह गाँव
लेन देन की बात का चक्कर वहां कहाँ पैर चलता था
अगवानी से विदा घडी तक किसी को कुछ न खलता था
कन्या पक्ष से लड़के वाले रखते थे अच्छा बर्ताव
कितना बढ़िया था वो गाँव
सुबह सुबह पक्के कुएं पर पनिहारिन जब आती थीं
जिस जिस घर में पानी भरतीं सुब का हाल सुनाती थीं
किसकी चक्की टूट गयी है किसका जनता नया नया
किसकी ढेंकी लंगड़ी धुन्ग्री किसका टांका कहाँ भिड़ा
किसके नयना पी बिन बरसें किस किस के भारी हैं पौव
कितना बढ़िया था वह गाँव
शीत लहर आने के पहले ताल में पक्षी आते थे
तरह तरह के रंग बिरंगे जलवे खूब सुहाते थे
पनचक्की पर गठरी लेकर गोरी का आना जाना
याद ज़रा सी आते ही मून हो जाया करता दीवाना
सूरज ढलते चौपालों में जल उठते थे कई अलाव
कितना बढ़िया था वह गाँव
आज शहर की भीड़ भाड़ में खोज रहा हूँ रोटी पानी
माँ के हाथ से दूध मलाई बीते युग की कोई कहानी
बेफिक्री के सर पर ऐसा फ़िक्र ने लक्कड़ मारा है
मजबूरी के आगे गिरवी अपना दिल बेचारा है
जीवन गाथा और नहीं कुछ यह तो है कागज़ की नाव
कितना बढ़िया था वह गाँव
आज पुनः उस गाँव गया था
गाँव का हर अंदाज़ नया था
देखा सोंचा परखा जांचा
पर वह पहले जैसा न था
मेल मिलाप न पहले जैसा पहले ऐसा रंग न रूप
पेंड़ो के बिन धरा का सीन दहकाती रहती थी धूप
ताल पाट कर किसी सेठ ने कोठी नयी बना ली थी
उसके लौंडो के हाथों में बोतल और दो नाली थी
ग़ैरों का क्या ज़िक्र करें जब अपने ही देते हों दाँव
कितना बढ़िया था वह गाँव
आम के जितने बाग़ वहां थे भठ्ठे वाले लील गए
शीशम नीमचमेली जामुन वनटंगियागण छील गए
युकिलिप्ट्स के पटरों से क़ब्रे धान्पी जातीं हैं
झाडी रहठा के डंडों से मंजिल नापी जाती है
सोंटा लाठी छड़ी बेंत का आसमान पे लटका भाव
कितना बढ़िया था वह गाँव
प्रधानो को चुनते चुनते गाँव का दो दो फाँट किया
एक ने साथ अगर छोड़ा तो दूजे ने फिर साथ दिया प्रधानी की कुर्सी अबतो नोट लगा केर मिलती है
ग्राम्य विकास के धन से उनके घर की रोटी चलती है
कितना अच्छा बिजनेस भैया एक छटाक पे बारह पाव
कितना बढ़िया था वोह गाँव
शादी से शहनाई ढोलक आतिशबाजी रूठ गयी
मंगनी होती धूम धाम से कुछ चूका तो टूट गई
ज्यादा चढ़ा दहेज़ तो समधी फूले नहीं समाते हैं
टीवी फ्रिज वो दोपहिया में दुल्हे जी फँस जाते हैं
आजीवन के लिए सुरक्षित कभी न भर पाए जो घाव
कितना बढ़िया था वोह गाँव
गड्ढे ताल तलैया पट कर सड़कें घर आबाद हुए
अंजुरी भर बादल रोया तो घर आंगन बर्बाद हुए
घर से निकला गन्दा पानी कुएं में अब जाता है
हैण्ड पम्प पैर बांध के मोटर सारा गाँव नहाता है
चौपालें हैं विधवा जैसी लकड़ी बिन क्या जले अलाव
कितना बढ़िया था वोह गाँव
त्योहारों की तैयारी में नया सभी अपनाएं फंडा
जिस होवे पर्व मानना झुके उसी दिन आधा झंडा
शान व शेखी के कारण ही होता है ठनठन गोपाला
खांची भर समधी घर भेजो खास न पाए एक निवाला
इस अदा पर खानदान में होता रहता है चिठियाओं
कितना बढ़िया था वोह गाँव
ग्राम्य विकास के धन से उनके घर की रोटी चलती है
कितना अच्छा बिजनेस भैया एक छटाक पे बारह पाव
कितना बढ़िया था वोह गाँव
शादी से शहनाई ढोलक आतिशबाजी रूठ गयी
मंगनी होती धूम धाम से कुछ चूका तो टूट गई
ज्यादा चढ़ा दहेज़ तो समधी फूले नहीं समाते हैं
टीवी फ्रिज वो दोपहिया में दुल्हे जी फँस जाते हैं
आजीवन के लिए सुरक्षित कभी न भर पाए जो घाव
कितना बढ़िया था वोह गाँव
गड्ढे ताल तलैया पट कर सड़कें घर आबाद हुए
अंजुरी भर बादल रोया तो घर आंगन बर्बाद हुए
घर से निकला गन्दा पानी कुएं में अब जाता है
हैण्ड पम्प पैर बांध के मोटर सारा गाँव नहाता है
चौपालें हैं विधवा जैसी लकड़ी बिन क्या जले अलाव
कितना बढ़िया था वोह गाँव
त्योहारों की तैयारी में नया सभी अपनाएं फंडा
जिस होवे पर्व मानना झुके उसी दिन आधा झंडा
शान व शेखी के कारण ही होता है ठनठन गोपाला
खांची भर समधी घर भेजो खास न पाए एक निवाला
इस अदा पर खानदान में होता रहता है चिठियाओं
कितना बढ़िया था वोह गाँव
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